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Monday, April 28, 2025

बस्तर पंडुम बस्तर की अस्मिता आस्था और आकांक्षाओं का उत्सव”तृतीय चरण 2 अप्रैल से 5 अप्रैल तक दंतेवाड़ा में

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बस्तर पंडुम 2025”दंतेवाड़ा

आगामी 3 अप्रैल को होने वाला यह आयोजन, बस्तर क्षेत्र में शांति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नए सोपान तय करेगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने “बस्तर पंडुम 2025” को बस्तर की आत्मा से जुड़ा एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण बताते हुए कहा कि यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि बस्तर की अस्मिता, आस्था और आकांक्षाओं का उत्सव है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा बस्तर पंडुम के बुकलेट का विमोचन

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आज विधानसभा परिसर स्थित समिति कक्ष में मांदर की थाप पर नाचते कलाकारों की मौजूदगी में बस्तर पंडुम 2025 के लोगो का अनावरण किया। उन्होंने बस्तर पंडुम के सफल आयोजन के लिए अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह आयोजन सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के साथ ही बस्तर के प्रतिभाशाली कलाकारों को सशक्त मंच प्रदान करेगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने बस्तर पंडुम के बुकलेट का विमोचन किया।

डॉ कुमार विश्वास “बस्तर के राम”  कथा वाचन करेंगे

बस्तर क्षेत्र की कला, संस्कृति और परंपराओं के उत्सव ‘बस्तर पंडुम’ में  डॉ. कुमार विश्वास द्वारा “बस्तर के राम”  कथा वाचन किया जाएगा। आगामी 3 अप्रैल को होने वाला यह आयोजन, बस्तर क्षेत्र में शांति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नए सोपान तय करेगा।

उल्लेखनीय है कि दंडकारण्य क्षेत्र का रामायण काल में विशेष स्थान रहा है और श्री राम ने अपने वनवास काल का कुछ समय दंडकारण्य के जंगलों में व्यतीत किया था। डॉ. कुमार विश्वास बस्तर क्षेत्र के परिपेक्ष्य में श्री राम के महत्व पर अपनी राम कथा “बस्तर के राम” का वाचन करेंगे।

बस्तर पंडुम 2025’’ में तीन चरणों में स्पर्धाएं होंगी और चयन समिति भी बनेगी

बस्तर पंडुम 2025’’ में जनजातीय नृत्य, गीत, नाट्य, वाद्ययंत्र, पारंपरिक वेशभूषा एवं आभूषण, शिल्प-चित्रकला और जनजातीय व्यंजन एवं पारंपरिक पेय से जुड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। ये स्पर्धाएं तीन चरणों में संपन्न होंगी। जनपद स्तरीय प्रतियोगिता 12 से 20 मार्च, जिला स्तरीय प्रतियोगिता 21 से 23 मार्च, संभाग स्तरीय प्रतियोगिता दंतेवाड़ा में 1 से 3 अप्रैल तक सम्पन्न होगी। प्रत्येक स्तर पर प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार और प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे।एक चयन समिति होगी जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ आदिवासी समाज के वरिष्ठ मुखिया, पुजारी और अनुभवी कलाकार शामिल रहेंगे। इससे प्रतियोगिता में पारदर्शिता बनी रहेगी और पारंपरिक लोककला को न्याय मिलेगा।


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