राजस्थान /बाड़मेर:_इससे भारत अब चीन के एकाधिकार को दे सकता है मात और अपना सामरिक और तकनीकी भविष्य में भी बदलाव ला सकता है।
भारत का दुर्लभ खनिजों का वार्षिक आयात बहुत ज्यादा है
चीन दुनिया में दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर एकाधिकार रखता है। भारत हर साल करीब 700 टन दुर्लभ धातुएं चीन से आयात करता है। इसके अलावा, भारत हांगकांग, जापान, अमेरिका, इंग्लैंड, स्वीडन, सिंगापुर और मंगोलिया से भी इनकी सीमित मात्रा में खरीद करता है। कुल मिलाकर भारत का दुर्लभ खनिजों का वार्षिक आयात 1185 टन तक पहुंच चुका है।
रेअर अर्थ खनिज भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है
सिवाना की पहाड़ियों में मिला 1 लाख 11 हजार 745 टन रेअर अर्थ(दुर्लभ पृथ्वी खनिज)खनिज देश को आत्मनिर्भर बनाने की ताकत रखता है। यह खजाना भारत को रेअर अर्थ और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में नई ऊंचाई दे सकता है। लेकिन इसी इलाके में ग्रेनाइट के नाम पर अवैध खनन इस बहुमूल्य खजाने को नुकसान पहुंचा रहा है।
अरावली श्रृंखला की पहाड़ियां
समदड़ी, सिवाना, मोकलसर से लेकर जालोर तक फैली अरावली श्रृंखला की इन पहाड़ियों में ग्रेनाइट की वैध लीज जारी की गई हैं। पर असली खतरा इन लीज की आड़ में हो रहे अनियंत्रित खनन से है। बेशकीमती माइक्रो ग्रेनाइट में छिपे रेअर अर्थ खनिज को ऐसे में भारी नुकसान पहुंच रहा है।
ग्रेनाइट के लिए दी गई लीजों के आसपास भी बेहिसाब खुदाई हो रही है। सिवाना, फूलन, मोकलसर और कालूड़ी जैसे इलाकों में अवैध खनन बड़े पैमाने पर जारी है। जालोर तक रोजाना ट्रकों में पत्थर भरा जा रहा है, जिसकी निगरानी नहीं हो रही।
पहाड़ियों में 17 दुर्लभ जड़ी बूटियां है
शुरुआती सर्वे में पाया गया है कि इन पहाड़ियों में करीब 17 दुर्लभ खनिज मौजूद हैं. इनमें थोरियम, यूरेनियम, रूबीडियम, सीरियम और टिलूरियम जैसे खनिज शामिल हैं। इनका बाजार मूल्य करीब 1000 खरब रुपए आंका गया है।
विदेशों पर निर्भरता घटेगी
जी4 और जी3 स्तर की खोज में मिले संकेतों से पता चलता है कि यह इलाका देश के लिए खनिजों का खजाना साबित हो सकता है। यदि यह भंडार पूरे क्षेत्र में फैला पाया गया, तो भारत को रेअर अर्थ में आत्मनिर्भरता मिलेगी।इससे देश की विदेशों पर निर्भरता कम होगी।
हाई टेक्नोलॉजी में उपयोग
रेअर अर्थ खनिजों का उपयोग अत्याधुनिक तकनीकों में होता है. जैसे सुपरकंडक्टर, हाईब्रिड व्हीकल्स, बैटरियों, लेजर उपकरणों, और एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में इनकी अहम भूमिका होती है। यह खनिज रक्षा और डिजिटल सेक्टर के लिए भी जरूरी हैं। इससे हम चीन को कड़ी टक्कर दे पाएंगे।
दुनिया में रेअर अर्थ खनिजों का सबसे बड़ा निर्यातक चीन है। अगर भारत इन संसाधनों का सही दोहन करे, तो चीन पर निर्भरता घटाई जा सकती है। साथ ही भारत वैश्विक रेअर अर्थ बाजार में एक अहम खिलाड़ी बन सकता है।
शासन प्रशासन अहमियत को लेकर गंभीर नहीं
लेकिन चिंता की बात यह है कि सरकार और प्रशासन इस खजाने की अहमियत को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। रेअर अर्थ को नजरअंदाज कर ग्रेनाइट की खुदाई को प्राथमिकता दी जा रही है. जिससे यह दुर्लभ खजाना खत्म हो सकता है।
खामियाजा उठाना पड़ सकता है
विशेषज्ञों का मानना है कि इस इलाके की वैज्ञानिक तरीके से खनिज जांच और संरक्षण बेहद जरूरी है. यदि समय रहते रेअर अर्थ की रक्षा नहीं की गई, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई करें
अब वक्त है कि केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करें और अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई करें. सिवाना की पहाड़ियों को रेअर अर्थ का नेशनल ज़ोन घोषित कर संरक्षित किया जाना चाहिए, ताकि यह देश का सामरिक और तकनीकी भविष्य बना सके।
राजस्थान में मिला दुर्लभ खनिजों का खजाना,भारत को आत्मनिर्भरता के साथ परमाणु ऊर्जा में दे सकता है नई ऊंचाई”
