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Friday, June 13, 2025

लक्ष्मण मस्तुरिया जी को सादर नमन: एक युग की आवाज़ को श्रद्धांजलि

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लक्ष्मण मस्तुरिया जी एक महान कवि की अमर लेखनी विरासत ,मस्तुरिया जी को सादर नमन कि उनकी कविताओं में जिंदा है छत्तीसगढ़ की संस्कृति

लक्ष्मण मस्तुरिया जी: एक युग की आवाज़, एक अमिट छाप छत्तीसगढ़ के लिए।लक्ष्मण मस्तुरिया जी का जन्म 7 जून 1949 को हुआ था और स्वर्गारोहण 3 नवंबर 2018 को हुई थी। 
लक्ष्मण मस्तुरिया जी को उनके योगदान के लिए सादर नमन करना उनके छत्तीसगढ़ के प्रति लगाव छत्तीसगढ़िया लोक संगीत छत्तीसगढ़ी कविता के लिए बिल्कुल सही है। सही अर्थों में लक्ष्मण मस्तुरिया जी छत्तीसगढ़ के सपूत दुलरवा बेटा कहा जा सकता है क्योंकि वह छत्तीसगढ़ के माटी_पुत्र थे जिन्होंने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और समाज को एक नई दिशा देने का काम किया। मस्तुरिया जी की कविताएं न केवल छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को दर्शाती हैं, बल्कि सामाजिक विषमताओं और राजनीतिक विद्रूपताओं पर भी करारा प्रहार करती हैं।उसके द्वारा लिखित कोई कविता सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और देश की दुर्व्यवस्था पर करारा प्रहार करती हुई दिखती है तो किसी कविता पर उसकी मार्मिक संवेदनाएं भी झलकती है।उनकी कविताओं में एक अनोखी सादगी और मार्मिकता है जो पाठकों और श्रोताओं को गहराई से प्रभावित करती है। मस्तुरिया जी उत्तम विचार रखने के साथ उनकी वाणी भी बहुत मधुर थी जो भी उनकी गीतों को सुनता है वह उसमें खो जाता है।

हिंदी कविताओं के क्षेत्र में भी उनका योगदान है ।स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया जी द्वारा लिखित कुछ प्रमुख पंक्तियाँ जैसे “कुछ हमें उद्योग दो, है वक़्त की पुकार अब” और “चारों ओर चलन बिक रहा है, असहाय मेरा वतन दिख रहा है” आज भी लोगों के दिलों में एक नई चेतना जगाने का काम करती हैं। मस्तुरिया जी की जयंती पर उन्हें याद करना और उनके कार्यों को पढ़ना निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के लिए प्रेरणादायक होगा। उनकी कविताओं और गीतों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं का सुंदर चित्रण है, जो पाठकों और श्रोताओं को गहराई से प्रभावित करता है।संस्कृति और समाज का सम्मान है मस्तूरिया जी को याद करना उनकी जयंती हमें छत्तीसगढ़ की संस्कृति और समाज का सम्मान करने और उन्हें समझने का अवसर प्रदान करती है। आज बस हम यही कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में जीने वाले तो बहुत मिले हैं लेकिन छत्तीसगढ़ को समझने वाले कोई बिरले हैं उनमें से एक स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया जी हैं।

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