धर्म और अध्यात्म, दोनों ही मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं, लेकिन वे अलग-अलग हैं। धर्म अक्सर एक संगठित प्रणाली, विश्वासों और प्रथाओं का पालन करता है, जबकि अध्यात्म व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक खोज पर अधिक केंद्रित होता है।
चलिए धर्म और अध्यात्म के बारे में सदगुरु जी से समझते हैं:_
अध्यात्म बनाम धर्म
क्या ?अध्यात्म और धर्म में कोई फर्क है!! अगर वे अलग-अलग हैं, तो क्या उनमें कोई संघर्ष है? सद्गुरु स्पष्ट कर रहे हैं कि आज का हर धर्म किसी समय आध्यात्मिक प्रक्रिया था तो, फिर ऐसा क्या हुआ जो आध्यात्म धर्म में बदल गया? यह जानने के लिये पढिये…आध्यात्म बनाम धर्म
सदगुरु : जैसे ही आदमी धार्मिक हो गया तो दुनिया के सारे संघर्ष खत्म हो जाने चाहिये थे। दुर्भाग्यवश, पूरी दुनिया में, धर्म ही हर कहीं संघर्षों का मुख्य कारण बना है, जिससे, धरती पर, हजारों वर्षों से, सबसे ज्यादा लोग मरे हैं और सबसे ज्यादा लोगों को दुख दर्द मिला है। इसका मुख्य कारण ये है कि सारे धर्म बस, यकीन करने या विश्वास करने की प्रणालियों से पैदा हुए हैं।
यकीन कहाँ से आता है ? विश्वास करने का मतलब ये है कि आप जानते नहीं हैं !! अगर आप कुछ जानते हैं तो उसमें विश्वास करने का कोई सवाल नहीं उठता, आप बस उसको जानते हैं। मिसाल के तौर पर, क्या आपको यकीन है कि आपके दो हाथ हैं, या फिर आप ये जानते हैं? आपकी अगर आँखें न भी हों, तो भी आप जानते हैं कि आपके पास हाथ हैं। हाथों के बारे में आप जानते हैं पर ईश्वर में आप विश्वास करते हैं! क्यों?
अपने स्वभाव से आप जो पा सकें, उस पूरी तरह शांतिमय अवस्था और आज के समय में आपके असंतुलन की अवस्था इन दोनों के बीच जो अंतर है, उसे धर्म ने भर दिया है।
विश्वास का सवाल इसलिये खड़ा होता है, क्योंकि आप यह मानने को तैयार नहीं हैं कि आप जानते नहीं हैं। आप उस चीज़ में विश्वास करते हैं जो आपके लिये सांस्कृतिक और सामान्य रूप से सुविधाजनक है। आप चाहे विश्वास करें कि ईश्वर है या न करें कि ईश्वर है, दोनों में कोई फर्क नहीं है – दोनों ही अवस्थाओं में आप एक ही नाव में हैं। आप किसी ऐसी बात में यकीन रख रहे हैं, जो आप जानते ही नहीं Iजब आप किसी ऐसी चीज़ में विश्वास रखते हैं तो आप एक खास भरोसे, आत्मविश्वास के साथ घूम सकते हैं।
आइए अब सदगुरु से हटकर बाहरी कड़ियां देखे,
अध्यात्म के 3 तत्व:_अध्यात्म विज्ञान का समूचा ढाँचा भी इसी प्रकार तीन आधारों पर खड़ा है। आस्तिकता, आध्यात्मिकता व धार्मिकता। तत्वज्ञान की दार्शनिक विवेचनाओं में ईश्वर जीव, प्रकृति की विवेचना होती रहती है। मनीषियों द्वारा भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग को आध्यात्मिक प्रगति का आधार निरूपित किया जाता है।
धार्मिक शक्ति क्या है?…_धार्मिक शक्ति का अर्थ है किसी धर्म या धार्मिक विश्वास के आधार पर लोगों या संस्थाओं के पास होने वाली शक्ति या प्रभाव, जो अक्सर धार्मिक सिद्धांतों, मान्यताओं और प्रथाओं को लागू करने, प्रचारित करने या बनाए रखने के लिए इस्तेमाल की जाती है.
अपने अंदर अध्यात्मिक शक्ति होने के संकेत:_प्रमुख संकेतकों में उच्च अंतर्ज्ञान, सहानुभूति, ज्वलंत सपने, प्रकृति से जुड़ाव, ऊर्जा संवेदनशीलता, समकालिकता, उपचार क्षमता, दिव्यदृष्टि अनुभव, रहस्यवाद के प्रति आकर्षण, आंतरिक ज्ञान और अभिव्यक्ति कौशल शामिल हैं। ये संकेत गहन आध्यात्मिक या जादुई योग्यता का संकेत देते हैं।