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Monday, April 28, 2025

राम ने निरंतर देव और कृष्ण ने लगातार मनुष्य बनने की कोशिश की’” राम मनोहर लोहिया समाजवाद के प्रखर चिंतक(23 मार्च जयंती विशेष)

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डॉ राममनोहर लोहिया (जन्म 23 मार्च 1910 – मृत्यु -12 अक्टूबर,1967) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे।1

‘कृष्ण’ नामक लेख में डॉ राम मनोहर लोहिया ने लिखा है, ‘कृष्ण की सभी चीजें दो हैं।दो मां, दो बाप, दो नगर, दो प्रेमिकाएं या यों कहिए अनेक।जो चीज संसारी अर्थ में बाद की या स्वीकृत या सामाजिक है, वह असली से भी श्रेष्ठ और अधिक प्रिय हो गई है।



देश में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया चाहते थे कि दुनियाभर के सोशलिस्ट एकजुट होकर मजबूत मंच बनाए।

ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती देने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया डॉ. राम मनोहर लोहिया भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महानायकों में से एक थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के सामने निर्भीकता और साहस के साथ अपनी आवाज बुलंद की। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं,बल्कि एक प्रखर समाजवादी विचारक और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे।उन्होंने समाजवाद के प्रचार-प्रसार और जातिवाद, ऊँच-नीच तथा धार्मिक भेदभाव से मुक्त भारत का सपना देखा।
उनका मानना था कि सर्वजन समभाव की भावना से ओत प्रोत समाज ही सही मायने में स्वतंत्र और समृद्ध हो सकता है।डॉ. लोहिया का जन्म 23 मार्च1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर के शहजादपुर मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता हीरालाल लोहिया एक शिक्षित व्यक्ति थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय थे.जिससे लोहिया जी को भी स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बचपन से ही मिली। उन्होंने 1916 में अपनी प्राथमिक शिक्षा टंडन पाठशाला,अकबरपुर से प्राप्त की और बाद में विश्वेश्वर नाथ हाई स्कूल, अकबरपुर से माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उच्च_शिक्षा के लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने बी.ए. किया और इसके बाद बर्लिन विश्वविद्यालय (जर्मनी) से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।

लेख का निष्कर्ष (जनचौपाल36)
देश में रामराज्य की बातें होती हैं,राष्ट्र में रामराज्य लाएंगे!!इसके लिए राम और कृष्ण का जीवन समाजवाद का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।जिसे हर व्यक्ति द्वारा आत्मसात व अंगीकार करके राष्ट्र में वृहत समाजवाद लाया जा सकता है।बिना समाजवाद के विकसित राष्ट्र की परिकल्पना एक खयाल ही हो सकता है।

दो युगों में दो युगपुरुष जो समाजवाद के उदाहरण है
देवत्व की दिव्यता और मनुष्य की मानवता को एक रूप में समाहित कर एक उत्कृष्ट समाज बनाना,जहां ज्ञान हो,विचार हो,सेवा और समृद्धि का भाव हो ।अनुकरणीय राम पूरा वैभव महल त्याग कर वनवास जाके कंदमूल खाकर दिन बिताए वहीं कृष्ण कारावास में पैदा होकर ग्वाला जीवन व्यतीत कर द्वारिकापुरी बना 56 पकवान खाए।

  1. ↩︎
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