आपने अभी तक इंसानों को हंसते बोलते इशारों को समझते देखा है ।आपको शायद यह जानकर हैरानी होगी लेकिन जो कुछ भी हम लिखने और बोलने जा रहे हैं उसे यह पेड़ पौधे भी सुन रहे हैं । पेड़ पौधों के सुनने और जो कुछ सुना, उस पर उनकी प्रतिक्रिया इंसानों से अलग होती है ।
भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने 100 साल पहले ही कह दिया था कि पेड़ पौधे भी जानवरों की तरह खुशी और दर्द को महसूस कर सकते हैं ।जे सी बसु एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने पौधों की जीव विज्ञान और भौतिकी पर शोध किया। उन्होंने दिखाया कि पौधे भी जीवित प्राणी हैं और वे अपने आसपास के वातावरण को महसूस कर सकते हैं।
1973 में लिए किताब द सीक्रेट लाइफ ऑफ़ प्लांट्स में दावा किया गया कि पेड़ पौधों को रॉक एंड रोल म्यूजिक की बजाय क्लासिकल म्यूजिक ज्यादा पसंद है उस वक्त बहुत सारे लोगों ने इस किताब को काल्पनिक विज्ञान कहकर खारिज कर दिया था लेकिन बाद में हुए अध्ययनों से पता चला कि पेड़ पौधे वाकई सुनते हैं । अब जिस तरह से हमारे वातावरण में शोर बढ़ता जा रहा है वैज्ञानिक कहते हैं कि उसका पेड़ पौधों पर बहुत बुरा असर हो रहा है ।
पेड़-पौधों की दुनिया में कई रोचक तथ्य हैं जो हमें उनकी जटिलता और संवेदनशीलता के बारे में बताते हैं। हाल के शोध से पता चलता है कि पेड़-पौधे अपने आसपास के वातावरण को महसूस कर सकते हैं और प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
पौधों को शोर कैसे प्रभावित करता है
दुनिया में शोर बढ़ता ही जा रहा है। इस शोर से सिर्फ इंसान और जानवर ही प्रभावित नहीं हो रहे हैं बल्कि पौधों पर भी इसका असर हो रहा है ।उनके कान नहीं होते फिर भी वह ध्वनि तरंगों को ग्रहण करते हैं ।पौधे कुछ खास वॉक पदार्थ निकालते हैं फिर इसका इस्तेमाल वह पत्तियों के नेटवर्क के जरिए अपने दूसरे अंगों तक संदेश भेजने के लिए करते हैं ।
कीट पतंगे भी ऐसा ही करते हैं मधुमक्खियां भी अपने पंखों को एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर फड़फड़ाती हैं ताकि कुछ खास पौधों में परागण हो सके। इवनिंग प्रिमरोज नाम का एक फूल भिनभिनाने की आवाज पर प्रतिक्रिया देता है जैसे ही उसे मधुमक्खी का पता चलता है तो उसके रस में चीनी की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ जाती है। अध्ययन बताते हैं कि फैल क्रैश नाम का पौधा कुछ ध्वनियों और आवाजों में अंतर कर सकता है।जब भी इस पौधे को किसी परभक्षी का एहसास होता है तो वह खुद को बचाने के लिए जहरीले तत्व छोड़ने लगता है। लेकिन हवा के कंपन के साथ ऐसा नहीं होता।
प्रयोग दिखाते हैं कि ध्वनि जीन की गतिविधि को बदल सकती है लगातार 5 दिन के शोर के बाद खेल क्रेस की कई जीनों की गतिविधि बदल गई, फोटोसिंथेसिस की गतिविधि कम हो गई ।जानवरों के जरिए भी शोर पौधों को प्रभावित करता है क्योंकि इससे परिंदे या परागण करने वाले कीट डरकर भाग जाते हैं ।
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने 15 साल तक इसके दीर्घकालीन प्रभावों का अध्ययन किया उन्होंने एक बड़े इलाके में वनस्पतियों को देखा उन जगहों पर जहां शोर के स्रोत को हटा दिया गया था और उन इलाकों में भी जहां अध्ययन शुरू होने से पहले प्राकृतिक गैस खनन की वजह से लगातार शोर हो रहा था।तीन इलाकों की तुलना से पता चला कि लगातार शोर की वजह से वनस्पतियों की जैव विविधता घट गई।
शोर वाली जगह पर कुछ चीड़ 75 फ़ीसदी तक कम हो गए ।जूनिपर के पेड़ों को अपने बीज फैलाने के लिए नीलकंठों की जरूरत होती है लेकिन नीलकंठ शोर का स्रोत हटाए जाने के बाद भी नहीं लौटे। ऐसे में जूनिपर के पेड़ों की जगह दूसरे पेड़ उग आए।
इससे पता चलता है कि शोर का पौधों पर लंबे समय तक प्रभाव होता है पृथ्वी पर जिस रफ्तार से इंसानों की संख्या बढ़ती जा रही है पेड़ों और वनों के लिए जगह सिमटती जा रही है ।
वैज्ञानिक आधार:_ वैज्ञानिकों के शोध ने पौधों की जीव विज्ञान और वर्गीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिनमें जगदीश चंद्र बसु,रीतेश कुमार चौधरी पुणे अश्विनी दरशेटकर पीएचडी स्कॉलर हैं।इनके कार्य ने पौधों के संरक्षण और उपयोग के लिए नए अवसर प्रदान किए हैं ।
हमने और आपने सभी ने यह तो पढ़ा ही है कि पौधे जो हैं प्रकाश की दिशा में गति प्राप्त करते हैं..
वृद्धि और विकास: पेड़-पौधे अपने आसपास के वातावरण के अनुसार अपनी वृद्धि और विकास को अनुकूल बना सकते हैं।
रासायनिक प्रतिक्रिया: पेड़-पौधे अपने आसपास के वातावरण में होने वाले बदलावों के जवाब में रासायनिक प्रतिक्रियाएं कर सकते हैं।कहीं कहीं तो नरभक्षी पेड़ पाए जाते हैं।
पेड़ पौधों का धर्म एवं आध्यात्मिक आधार
आपने त्रेता युग में सुना ही होगा कि सीता हरण के समय श्री राम ने पेड़ पौधे और लताओं से सीता का पता पूछते हैं,फिर कंदमूल पेड़ पत्तियां और फल खाकर वनवास व्यतीत करते हैं।लंका में भी माता सीता को अशोक वाटिका में अशोक वृक्षक नीचे ही स्थान दिया जाता है जहां न शोक है ना पीड़ा, भूख है न प्यास है मतलब यह है कि पेड़ों के पास भी शक्तियां होती थी।द्वापर युग में आपने श्री कृष्ण प्रसंग में सुना ही है कि माता द्वारा बंधने से उखल द्वारा जब दो पुराने पेड़ो को गिरा देता है तो वहां से दो देवकुमार प्रकट होते है,और मुरली की मधुर तान कदंब के पेड़ पर बैठ कर ही बजाते थे जिससे श्री राधा और गोपियों सहित पूरा गोकुल मंत्रमुग्ध हुआ करता था।वृंदावन में रासलीला देखने देवता पेड़ बन जाते हैं।आज के समय में वर्तमान में दीवाली बाद आंवला के नीचे बैठकर खाना खाया जाता है और व्रत द्वारा वट सावित्री में महिला सुहागिनों द्वारा बट वृक्ष को रक्षा सूत्र में बांधा जाता है।
पेड़ पौधे तो आयुर्वेद का मूल आधार ही है
आयुर्वेदिक का मूल आधार ही पेड़ पौधे और वनस्पति हैं। हमें पेड़ों से अनगिनत फल सेहतमंद फल मीठे फल प्राप्त होते हैं ।बीमारी में त्रिदोष नाशक माना गया है हर्रा ,बहेरा और आंवला को।
प्रकृति की हरियाली का नष्ट होना विनाशकारी है
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2000 से 2020 के बीच हमने 10 करोड़ हेक्टेयर में पहले वन क्षेत्र को खो दिया है इसका मतलब है कि 20 साल में ही हमने 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल साफ कर दिए हैं । दुनियां भर में जितने भी जंगलों को काटा जाता है उससे मिली 90% जमीन को खेती बाड़ी से जुड़े कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसमें 50% की जमीन पर फैसले उगाई जाती है जबकि 40 फीसदी जगह को मवेशियों की चरागाह के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इतने बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई से न सिर्फ हम हरा भरा इलाका खो रहे हैं बल्कि बहुत सारी प्रजातियां हमेशा के लिए लुप्त होती जा रही हैं।
हालांकि यह कहना कि पेड़-पौधे “सुनते” हैं, थोड़ा अतिशयोक्ति हो सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से सच है कि वे अपने आसपास के वातावरण को महसूस कर सकते हैं और प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
भारत में सरकारी पहल की जरूरत
अब सरकार का काम है कि पेड़ों को बचाने के लिए उसे बेवजह काटना या अत्याधुनिकता के दिखावे में सड़कों के लिए पेड़ों का विनाश करना अपराध की श्रेणी में रखा जाए और पेड़ विशेषतः जो जीवन दायक है उसे काटने वालों के ऊपर प्रतिबंधात्मक धारा लगाया जाए। क्योंकि वर्तमान समय में भारत में भीषण जल संकट देखने को मिल रहा है ।यह सब वनों के काटने के कारण पेड़ों के नष्ट होने के कारण ही हो रहा है क्योंकि हमें पता है कि वन जंगल के द्वारा ही बादल को रिझा कर वर्षा को बुलाया जाता है।
बीज संरक्षण पर ब्रिटेन ने फूल शॉक प्रूफ जगह बनाई है
पेड़ पौधों के विस्तृत अध्ययन के लिए ब्रिटेन के सीड बैंक में लगभग 240 करोड़ बीज रखे गए हैं जो पेड़ पौधों की 40000 से ज्यादा अलग-अलग प्रजातियों की हैं।इन्हें दुनियां के 190 देश से जुटाया गया है।
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