मोरक्को उत्तरी अफ्रीका में स्थित है, जो भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर के बीच है। यह अल्जीरिया, पश्चिमी सहारा और स्पेन से घिरा हुआ है।
मीडिया सूत्र: अफ्रीकी देश मोरक्को ने इस साल ईद अल अजहा यानी बकरीद पर कुर्बानी करने पर रोक लगा दी है।
मोरक्को किंग ने बड़ा फैसला लेते हुए इस साल बकरीद के दिन कुर्बानी पर रोक लगा दी है। उन्होंने कहा कि जनता की तरफ से इस साल वो कुर्बानी करेंगे। इस फैसले से देशभर में बवाल मचा हुआ है।मोरक्को के राजा मोहम्मद षष्ठम ने इस साल बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी पर रोक लगा दी है। यह फैसला देश में सूखे की स्थिति और पानी की कमी के मद्देनजर लिया गया है। राजा ने अपने बयान में कहा कि इस साल बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा पर रोक लगाई जा रही है, ताकि देश में पानी की बचत हो सके ।
मुस्लिम देश मोरक्को में ईद-उल-अजहा से पहले सरकार के एक फैसले ने देशभर में हड़कंप मचा दिया है। किंग मोहम्मद षष्ठम ने शाही फरमान में इस साल कुर्बानी के बकरे पर रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद देशभर में बकरों की खोज के लिए छापेमारी की जा रही है।
इस फैसले से देशभर में बवाल मचा हुआ है।
फैसले के पीछे के कारण देखें तो वहां सूखे की स्थिति है मोरक्को में इस समय सूखे की स्थिति बनी हुई है, जिससे पानी की कमी हो गई है।
शाही फरमान का उद्देश्य पानी की बचत है राजा ने कहा कि बकरे की कुर्बानी के लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, जिसे बचाने के लिए यह फैसला लिया गया है।
सरकार ने अपील जारी करते हुए कहा कि हमें वैकल्पिक तरीके पर विचार करना चाहिए। सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी के बजाय वैकल्पिक तरीकों का पालन करें, जैसे कि गरीबों को दान देना या अन्य सामाजिक कार्यों में योगदान देना।
महत्वपूर्ण बात यह है कि परंपरा का सम्मान करने का है। सरकार ने कहा है कि यह फैसला देश की परंपराओं और संस्कृति का सम्मान करते हुए लिया गया है, और लोगों से अपील की है कि वे इस फैसले का समर्थन करें।
एक नई सोच /एक नई बहस
कहीं इस आदेश का विरोध है तो कहीं इस आदेश का समर्थन भी है, जो इस फैसले का समर्थन कर रहा है,उनका कहना है कि यह कदम देश की भलाई के लिए उठाया गया है, और धार्मिक नियमों की लचीलापन भी ऐसी परिस्थितियों में दया और समझ का रास्ता अपनाने की इजाजत देता है। कुल मिलाकर, मोरक्को में इस बार बकरीद सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है