कोरबा: कोरबा जिले की पहचान आमतौर पर कोयला और बिजली उत्पादन से जुड़ी होती है, लेकिन इसी ऊर्जा नगरी की गोद में छुपा है एक और अद्भुत खजाना – चैतुरगढ़। समुद्र तल से लगभग 3060 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह स्थान सिर्फ अपनी बर्फीली ठंडक के कारण ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य, प्राचीन इतिहास, समृद्ध जैव विविधता और गहन आस्था के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यही वजह है कि इसे ‘छत्तीसगढ़ का कश्मीर’ कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ का इतिहास बहुत पुराना है त्रेता युग में रामायण के समय से
चैतुरगढ़, जिसे लाफागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, कोरबा से लगभग 70 किलोमीटर और पाली से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलचुरी वंश के शासकों द्वारा बसाई गई इस गढ़ नुमा संरचना को देखकर अंदाजा हो जाता है कि यह कोई साधारण स्थल नहीं है। चारों ओर मोटी दीवारों और प्राकृतिक खाइयों से घिरा यह क्षेत्र न सिर्फ सुरक्षा की मिसाल बल्कि यहाँ की भौगोलिक स्थिति इसे एक अनुपम सौंदर्य भी प्रदान करती है। गर्मियों में भी यहां का मौसम इतना ठंडा रहता है कि तापमान 5 से 10 डिग्री तक नीचे चला जाता है।सुदूर तक फैला समतल मैदान, हरे-भरे जंगल, और रहस्यमयी गुफाएं चैतुरगढ़ को प्रकृति प्रेमियों के साथ इतिहासकारों के लिए रहस्य और रोमांचक स्थल बना देती हैं।
महिषासुर मर्दिनी का प्राचीन मंदिर,
चैतुरगढ़ का प्रमुख आकर्षण है मां महिषासुर मर्दिनी का प्राचीन मंदिर, जिसे आठवीं सदी में कलचुरी वंशिय राजाओं ने बनवाया था। गर्भगृह में देवी महिषासुर मर्दिनी की 12 भुजाओं वाली प्रतिमा से सुसज्जित है, जो श्रद्धा और साहस का प्रतीक मानी जाती है। साल के दोनों नवरात्रों में हजारों श्रद्धालु मंदिर आकर मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं। मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित शंकर गुफा एक रहस्यमय और रोमांचक स्थल है। यह गुफा करीब 25 फीट लंबी है और इसका प्रवेश थोड़ा कठिन है।
लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट
चैतुरगढ़ अब केवल धार्मिक स्थल नहीं रहा। इसकी पहाड़ियों, जंगलों और ठंडी हवाओं ने इसे एक लोकप्रिय पिकनिक और ट्रैकिंग स्पॉट बना दिया है। आगंतुको को एक अलग ही आनंद प्रदान करता है।
मध्य भारत का ग्रीन लंग्स
चैतुरगढ़ में प्रवेश के लिए आपको मेनका, हुंकरा और सिंहद्वार मिलेगा।जिसमें वास्तुशिल्प का अद्भुत मिसाल हैं,साथ ही प्राचीन काल में किले निर्माण की सोच को भी उद्धृत करते हैं। किले के भीतर स्थित पाँच तालाबों में से तीन आज भी पानी से लबालब भरे हुए हैं। यह जल संरचनाएं उस समय के जल प्रबंधन की साक्षी हैं।
चैतुरगढ़ की पहाड़ियाँ हसदेव अरण्य के जंगलों से जुड़ी हुई हैं, जिसे मध्य भारत का “ग्रीन लंग्स” कहा जाता है। यहाँ की जैव विविधता अद्भुत है – चीतल, भालू, तेंदुआ और हाथियों के साथ-साथ अनेक प्रकार के औषधीय पौधों की प्रजातियां यहां देखी जाती हैं। इलाका केवल पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण नही है, बल्कि प्रकृति की विविधता को भी संरक्षित रखने का संदेश देता है। चैतुरगढ़ पहाड़ों से चामादरहा, तिनधारी और श्रंगी झरना बहता है। बता दें, हसदेव नदी की सहायक नदी जटाशंकरी नदी का उद्गम मैकाल पर्वत श्रेणी के चैतुरगढ़ के पहाड़ो से हुआ है। यहां नज़ारा अगर कोई एक बार देख ले तो वह इससे बंध जाता है।
इतिहास की गूंज, प्रकृति की सुंदरता और आस्था की शक्ति एक साथ समाहित
चैतुरगढ़ किले को राजा पृथ्वी देव ने बनवाया था। किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 यानी 1069 ईस्वी में हुआ। किले के अंदर जाने के लिए तीन द्वार यानी रास्ते हैं, मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार। दिलचस्प बात यह है कि किले की अधिकांश दीवारें प्राकृतिक रूप से निर्मित हैं, जबकि कुछ हिस्सों में मानव निर्मित दीवारों का निर्माण किया गया है। यहां इतिहास की गूंज, प्रकृति की सुंदरता और आस्था की शक्ति एक साथ समाहित होती है।
चैतुरगढ़ किले में नामजद पांच तालाब है
चैतुरगढ़ किले में पांच तालाब है। यह तालाब किले के ऊपर हैं। पांच तालाबों में से तीन तलाब हमेशा सदाबहार रहते हैं यानी इन तालाबों में हमेशा पानी भरा रहता है। यह किले की खासियत को और भी बढ़ाने का काम करते हैं।गर्गज तालाब, सूखी तालाब और केकड़ा तालाब, ऐसे तालाब हैं जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। बता दें, गर्गज तालाब, गर्गज पहाड़ के नीचे बसा हुआ है जहां आप घूम भी सकते हैं।