भारत एक ऐसा देश है,जिसकी भूमि पर धर्म संस्कृति और इतिहास की जड़ें बेहद गहरी है। सदियों से हमारी यह पवित्र धरती कई अद्भुत और भव्य मंदिरों की गवाह रही है, जिनकी सुंदरता विशालता और स्थापत्य कला देखकर पूरी दुनिया आश्चर्य चकित हो जाती है।
भारत के सबसे विशाल मंदिर कौन-कौन से हैं और कहां स्थित है
भारत एक ऐसा देश है जहां हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत आज भी मौजूद है।यहां ऐसे कई भव्य और विशाल मंदिर है, जो न केवल अपनी सुंदरता बल्कि अपनी वास्तुकला और आकार के कारण भी प्रसिद्ध है। आज की इस लेख में हम आपको बताएंगे ,भारत के एक ऐसे सबसे विशाल अद्भुत और भव्य मंदिर जिनकी भव्यता और दिव्यता देखकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे।
भारत के विशाल मंदिरों में पहला स्थान श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर
विशाल मंदिरों के रहस्य उनके निर्माण की अद्भुत कहानी और उनकी धार्मिक महत्व लिए पहले नंबर पर है, श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर श्रीरंगम का श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर के समीप कावेरी नदी के सुरम्य द्वीप पर स्थित एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र मंदिर है ।भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर हिंदू धर्म के 108 दिव्य देश में प्रथम स्थान रखता है जिसका उल्लेख तमिल साहित्य और वैष्णव भक्ति परंपरा में अत्यंत आदर के साथ किया गया है ।
भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर 156 एकड़ क्षेत्रफल में
मंदिर भगवान विष्णु के विशिष्ट स्वरूप श्री रंगनाथ को समर्पित है, जहां वे शेषनाग की शैय्या पर योग निद्रा में लेटे हुए हैं ,जो की अत्यंत मनोहारी दृश्य है ।इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका विशाल परिसर है ,जो लगभग 156 एकड़ के क्षेत्रफल में विस्तृत होने से भारत का सबसे बड़ा और विशाल मंदिर परिसर माना जाता है। मंदिर का यह भव्य परिसर सात विशाल प्राकार और 21 भव्य एवं कलात्मक गोपुरम से सुशोभित है। इन गोपुरम में सबसे ऊंचा राज गो पुरम लगभग 236 फीट की ऊंचाई दिए हुए हैं जो दूर से ही श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है ।
मंदिर के भव्यता में इसके वास्तुकला कारीगरी और रंगबिरंगे शिल्प है
मंदिर की भव्यता वास्तुकला की अद्भुत कारीगरी और रंग-बिरंगे शिल्प इसे भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना बनाते हैं इस मंदिर परिसर का विस्तार करीब 156 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है जिससे यह न केवल भारत का बल्कि विश्व के सबसे बड़े सक्रिय मंदिर परिसरों में से एक माना जाता है।
मंदिर के अंदर जाने पर आध्यात्मिक शुद्धता और ऊर्जा बढ़ती है
मंदिर का मुख्य गर्भ गृह स्वर्ण की भव्य परत से सज्जित है,जहां भगवान रंगनाथ स्वामी की दिव्य मूर्ति विराजमान है। परिसर के अंदर विभिन्न छोटे-बड़े मंदिर भी स्थित है जिनमें देवी लक्ष्मी रामानुजाचार्य गरुड़ और अन्य देवी देवताओं के पूजा स्थल है। इस मंदिर की स्थापत्य कला द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है जिसमें अत्यंत सूक्ष्मता कुशलता और सुंदरता के साथ पत्थरों पर शिल्पकार की गई है।यहां बने स्तंभों पर नृत्य मुद्रा में देव देवियों की मूर्तियां महाकाव्य के दृश्य और पौराणिक कथाओं के चित्र उकेरे गए हैं। मंदिर में सात दीवारों का घेरा सप्त प्राकार है जो आध्यात्मिक उन्नति के सात चरणों का प्रतीक माना जाता है ।प्रत्येक घेरा अलग-अलग महत्व और नियमों के साथ बनाया गया है, जहां प्रत्येक प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर आध्यात्मिक शुद्धता और ऊर्जा बढ़ती जाती है ।
साल भर लाखों की संख्या में संत श्रद्धालु पर्यटक और इतिहासकार आते हैं
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के कारण इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में भी स्थान मिला है ।यह साल भर श्रद्धालु संत पर्यटक और इतिहासकार, लाखों की संख्या में आते हैं जो इसके सांस्कृतिक धार्मिक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं का अवलोकन करते हैं ।इस मंदिर में वैष्णव परंपरा के अनेक त्यौहार बड़ी भव्यता और उल्लास के साथ मनाए जाते हैं ।जिनमें वैशाख उत्सव वैशाखी एकादशी और वैभव उत्सव प्रमुख है ।
आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव और ऐतिहासिक महत्व
विशेषत: वैभव उत्सव और अध्ययन उत्सवों के दौरान मंदिर में होने वाले अनुष्ठान पूजा पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम श्रद्धालुओं के मन को भक्ति और श्रद्धा से भर देते हैं। इस मंदिर की सुंदरता भव्यता आध्यात्मिक ऊर्जा और ऐतिहासिक महत्व इसे भारत की अमूल्य धार्मिक धरोहर बनाते हैं जिसका दर्शन हर व्यक्ति के लिए एक दिव्य अनुभव बन जाता है।